About Jain College
मानवीय समाज की पूर्णता महिलाओं के शैक्षणिक, आर्थिक एवं समाजिक विकास के बिना संभव नहीं है। इसी क्रम में
महिलाओं के शैक्षणिक विकास को ध्यान में रखकर श्री जैन पाठशाला सभा द्वारा इस कन्या महाविद्यालय की स्थापना करने का
संकल्प लिया गया। 3 सितम्बर, 1984 को माननीय श्री प्रद्युम्न सिंह जी, तत्कालीन स्वायत शासन मंत्री, राजस्थान सरकार ने
इस हेतु श्री जैन पाठशाला सभा का आवेदन स्वीकार करते हुए, भूमि निःशुल्क प्रदान की। श्री जैन पाठशाला सभा के अध्यक्ष श्रीहनुमान दास जी सिपानी की अध्यक्षता में प्रबन्ध समिति के प्रतिनिधि मण्डल ने इस संकल्प को साकार करने के लिए श्री नेमचन्दजी खजान्ची, जिन्होने श्री जैन पाठशाला सभा की बीदासर बारी के बाहर भूमि पर श्री जैन कन्या महाविद्यालय हेतु भवन बनाकर देना स्वीकार किया। भवन का शिलान्यास माननीय श्री नेमचन्द जी खजान्ची द्वारा 3 मई, 1993 को हुआ और इस प्रकार एक विशाल एवं भव्य श्री जिन कुशल सूरि भवन का निर्माण हुआ जिसका उद्घाटन 25 अक्टूबर, 1995 को श्री ललित किशोर चतुर्वेदी,तत्कालीन सार्वजनिक निर्माण एवं उच्च शिक्षा मंत्री, राजस्थान सरकार के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। श्री जैन कन्या महाविद्यालय का यह सुन्दर और सुविधायुक्त भवन (श्री जिन कुशल सूरि भवन) न केवल शहर के भीतरी भागों के नजदीक है,अपितु गंगाशहर भीनासर, रानीबाजार, औद्योगिक क्षेत्र आदि स्थानों से भी अधिक दूरी पर नहीं है। छात्राओं की संख्या जो 1995-96 में मात्र 200 थी वह 2011-2012 में बढकर 1600 हो गई। यह इस महाविद्यालय की गुणवतापूर्ण अघ्यापन और मार्गदर्शन का परीणाम है। छात्राओं की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए ही उदारमना दानवीर सेठ श्रीमान नेमचन्द जी खजान्ची के अर्थ सहयोग से एक विशाल हाॅल (सज्जन सभागार) का निर्माण किया गया औेर स्वच्छ पेयजल हेतु एक प्याऊ का निर्माण किया गया।

Sh. Vijay Kochar
President

Sh. Narendra Kochar
Secretory
Principal Message
प्रत्येक शिक्षण संस्थान अपने प्रचलित अर्थो में शिक्षार्थियों को शिक्षा प्रदान करने के उद्धेश्य की पूर्ति हेतु बने होते है। हमारा महाविद्यालय इसका अपवाद नहीं है। भावी जीवन के निर्माण में शिक्षण संस्थान की भूमिका को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। विद्यालयी बहुविषयी शिक्षा के उपरान्त महाविद्यालयों में विषय विशेष की शिक्षा प्रदान करने के उद्धेश्य से पाठ्यक्रमों का निर्माण किया जाता है ताकि शिक्षार्थी अपनी रूचि, योग्यता एवं भविष्य में आजीविका हेतु उपयोगी विषयों का चयन कर उसमें शिक्षा ग्रहण कर सकें। शिक्षार्थी की क्षमता को मात्र सूचनापरक तथ्यों के संग्रहण हेतु भण्डारगृह के रूप में विकसित करने से शिक्षा प्रदान करने की सार्थकता सिद्ध नहीं होती वरन सृजनात्मक एवं मूल्यपरक शिक्षा से विकसित व्यक्तित्व अपने अनुभव कौशल, सृजनशीलता आदि से अपनी क्षमता बढाकर जीवन को और अधिक मूल्यवान तथा सार्थक बना सकता है क्योंकि शरीर, बुद्धि, मन एवं आत्मा के समन्वित विकास से ही शिक्षा की उपादेयता सिद्ध हो सकती है ।
इसी क्रम में हमारे महाविद्यालय में भी जीवन के निर्माण में अपेक्षित विभिन्न विषयों के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जा रही है। कला, कम्प्यूटर विज्ञान एवं वाणिज्य संकाय में वर्तमान में स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा दक्ष एवं समर्पित प्राध्यापकों के मार्गदर्शन में प्रदान की जा रही है। प्रतिस्पर्धा के इस कठोर युग में छात्राओं को जहां एक ओर जीवन में सफलता मिले इसके लिए व्यवहारिक शिक्षा दी जा रही है वहीं मानवीय मूल्यों को भी वे बचा सके, ऐसे प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रयास भी किया जा रहा है। क्योंकि जीवन की पूर्णता व्यवहारिक जगत एवं नैतिक मूल्यों के पारस्परिक संतुलन पर ही निर्भर करती है। महाविद्यालय में अध्ययन के उद्धेश्य से आने वाली छात्राएं भविष्य में अपने वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में समन्वय स्थापित करने में सक्षम हो तथा एक सुशिक्षित नागरिक के रूप में राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन में सक्षम हो, ऐसी मेरी कामना है।
अस्तु
संध्या सक्सेना (प्राचार्य)
श्री जैन कन्या स्नात्कोत्तर महाविध्यालय
बीकानेर
